Tuesday, February 15, 2011

वक्त बदल रहा है, आप इसकी आहट सुन पा रहे हैं?- संत वेलंटाइन और महाराज मनु का मुकाबला-14/2/11

वक्त बदल रहा है, आप इसकी आहट सुन पा रहे हैं?

by Dilip Mandal on Monday, February 14, 2011 at 11:30am

संत वेलंटाइन और महाराज मनु का मुकाबला

(EK SARTHAK CHARCHA-SAMAJ AUR VICHARON KE NANGAPAN AUR RURHIYON EVOM USKI VIKRITIYON MEIN DISHAHEENTA!!!....KYA SAHI HAI AUR KYA GALAT!!!!!

AACHHE MEIN JO KUCCH BURRA HAI,USSE DHOONDH KAR SAVDHAAN RAHNA AUR BUUREE MEIN JO KUCCH AACCHA HAI USSE BACCHHAYE RAKHNA SARTHAKTA HAI!!!

KUCCH KAHTEIN HEIN.....BABA VALINTINE NE PREM SE VASHIBHOOT HO KAR BAKI DAYITVYON KO TYAG DIYA,YUDHH KE DINO MEIN JAB SABKI CHHUTTIYAN RADDE KAR DEEI GAYEEIN,YEH PREMIKA KE PICCHE SAB NIYAMON KO TODD KAR GAYE,AUR NEYMON KI AVHELNA KI,ISSLIYE VALINTINE DIWAS KE ROZ UNKO FANSI DI GAYEEE....IISE PREM DIWAS KAHTE HEIN.

KUCCH KAHTEIN HEIN,TAMAM LOGON KE PASAAND NA KARNEIN KE BAVZOOD UNHONEIN KAI JODIYON KI PREM KE BAAD SHADIYAN KARWAIEN,ISSLIYE RUDHIVAADI LOG NARAZ HUE AUR UNKO FAANSI DE DI.....BRHAANTIYON HEIN/KINVDANTIYAAN HEIN!!

...AASLI KAHANI KISSI KO THIK SE PATTA NAHIN!!!

....USS VAQT KE KAYEE SAANTON KA NAAM VALENTINE THA!!!!


MERA MAANNA HAI PREM KARNE WALON KE KHILAAF JAKER "IZZAT KE LEYE HATYA THIK NAHIN",



LEKIN PREM KARNE WALON KO BHI PARIWAR AUR KARTAVYON KA KHAYAL "JISS HAADD TAK RAKH SAKEIN",RAKHNA CHAHIYE!!!

...'LIMIT,LAKSHMAN REKHA AUR BALANCE/SANTULAN IS THE KEY OF EVERY SUCCESS OF -LIFE'S EVERY DIMENSIONS!!!

....PEOPLE IN OUR COUNTRY DO MEET BEFORE THEIR MARRIAGE AND AFTER THEIR ENGAGEMENT...LIKE IT SHOWN IN "PERDES"MOVIE,OR 'TAAL'...'!!!

KYA KAHNA,DIL TOOO PAGAL HAI','MOHABBTEIN',SANJAY LEELA BHANSAALI'S MOVIES.. ETC ARE ALSO FEW OF LOVE STORIES.

(NOT MENTIONING THOSE DAYS OF BONEY KAPOOR SAHEB'S MOVIE'S!!!)

...ONE CAN SAY IT INDIAN VERSION OF "LIVE-IN" RELATIONSHIP!!!....VIBHA)

BY THE WAY I LIKED HIS 'MR INDIA'...MOVIE,EVEN 'NAYAK' WAS GOOD TILL SOME EXTENT.

नफरत की बुनियाद पर कायम एक पूरी व्यवस्था प्यार के धक्कों के आगे चरमरा रही है। ये बदलते उत्पादन संबंधों, आधुनिकता और शहरीकरण का मिलाजुला असर है....

दिलीप मंडल

भारतीय समाज के लिए ये जश्न मनाने और ढोल-नगाड़ा बजाने की घड़ी है। रिपोर्ट आई है कि देश में ऐसी अंतर्जातीय शादियों की संख्या लगातार बढ़ रही है, जिनमें दूल्हे या दूल्हन में से कोई एक दलित है। कुछ बात तो ये रिपोर्ट बता गई और कुछ बातें हम और आप अपने शहरों-महानगरों में देख रहे हैं। महानगरों में अंतर्जातीय शादियां अब लोगों को चौंकाती नहीं है। ये सही है कि ऐसा महानगरों और देश के विकसित अंचलों में ज्यादा हो रहा है, लेकिन शुभ शुरुआत कहीं से भी हो, शुभ तो है ही। विवाह संस्था ही दरअसल वो तोता है जिसमें जाति व्यवस्था की जान बसती है। विवाह संस्था के पुरातन स्वरूप में आ रही निर्णायक दिखती दरारों के अंदर अब बदलते समय की रोशनी झांकने लगी है। अलग अलग जातियों के बीच हो रही शादियां वर्णों की रक्त-शुद्धता की अवधारणा पर ऐसा वार है, जिसके आगे जाति व्यवस्था का टिक पाना संभव नहीं है। जाति व्यवस्था के लिए ये मुश्किल की घड़ी है। ये ऐसा समय है जब नफरत की एक पूरी स्थापित व्यवस्था प्यार के धक्कों के आगे चरमरा रही है।

दरअसल ये कभी न कभी होना ही था। इसमें देर सिर्फ इसलिए लगी कि भारत में औद्योगीकरण और शहरीकरण की रफ्तार कमजोर है। मुंबई और कोलकाता में जब कारखाने खुले तो कैंटीनों में साथ खाने का चलन शुरू हुआ और इस तरह रोटी ने जाति की सीमा लांघ ली। बसों में और ट्रेन-ट्राम आदि सार्वजनिक परिवहन के साधनों में साथ सफर करने, साथ बैठकर सिनेमा-थिएटर देखने, मेले-ठेलों-मॉल-बाजार में साथ घूमने आदि से छुआछूत के बंधन कमजोर पड़े। शहरों में रहने वाले ये हठ नहीं पाल सकते थे कि कोई छू गया तो नहाना होगा ना ही किसी के लिए ये संभव था कि पूरा हॉल बुक कराकर फिल्म देखे। तो इस तरह जो चीज हजारों साल में नहीं बदली वो दशकों में बदल गई।

इसके अलावा औद्योगीकरण ने कर्म और जाति के बंधनों को कमजोर कर दिया। भारत में जाति व्यवस्था सिर्फ ऊंच-नीच की यानी समाज में हायरार्की तय करने की व्यवस्था नहीं है। बल्कि जाति उत्पादन संबंधों और कर्मों को निर्धारित करने वाली व्यवस्था भी है। जाति व्यवस्था के तहत हर व्यक्ति की जन्म के साथ सिर्फ जाति तय नहीं होती,बल्कि उसका कर्म भी तय हो जाता है। भारत में हर जाति के साथ एक कर्म जुड़ा है। ऐसा लगभग दो हजार साल तक चला। तमाम सुधार आंदोलनों, भक्ति आंदोलनों और मुस्लिम और ईसाई शासन के झंझावातों को जाति की संस्था झेल गई। लेकिन ग्राम समाज से शहरी समाज में हो रहे संक्रमण और आधुनिकता ने वो कर दिखाया, जिसे बड़े-बड़े समाज सुधारक नहीं कर पाए थे।

आज शहरों में कोई ये नहीं कहेगा कि किसी जाति को कोई खास काम करना होगा। यहां तक कि शौचालय साफ करने के काम में भी सवर्ण जातियों के काफी लोग लगे हैं। सुलभ आंदोलन की बात करें,या सरकारी स्तर पर स्वीपर्स की नियुक्ति की या फिर फास्ट फूड ज्वायंट और मॉल्स की, सफाई के काम में अब गैर दलित भी हैं। देश में अब सबसे ज्यादा धन का सृजन सेवा क्षेत्र में हो रहा है और इस क्षेत्र में आने के लिए ब्राह्मणों से लेकर दलितों तक में बराबर की होड़ लगी है। सेवा शूद्रों का काम है, बोलने वाले अब हास्य के पात्र हैं।रिटेलिंग, बैंकिग, इंश्योरेंस से लेकर हेल्थकेयर और हॉस्पिटालिटी जैसे समाम सेक्टर में हर जाति समूह के लोग काम करते हैं।

जाति व्यवस्था मे एक के बाद एक दरारें लगातार आती गईं और अब इस पर निर्णायक प्रहार वहां हो रहा है, जिसकी शुद्धता के बिना जाति बच ही नहीं सकती। ये प्रहार विवाह संस्था के वर्णवादी स्वरूप पर हो रहा है। शहरों ने युवक-युवतियों के बीच संबंधों को नया स्तर प्रदान किया है। खासकर महिलाओं की आर्थिक आजादी ने उन्हें संबंधों के मामले में भी ज्यादा आजाद होने का अवसर दिया है। अलग अलग जाति के युवक युवतियों के लिए मिलने जुलने के अवसर भी अब पहले से काफी ज्यादा हैं। शिक्षा संस्थाओं से लेकर दफ्तरों और काम करने की तमाम जगहों से लेकर क्लब-पार्क और इंटरनेट तक अब प्रेम की नई-नई संभावनाएं प्रदान कर रहे हैं। जाति व्यवस्था को सख्ती से लागू करने वाली व्यवस्था भी शहरों में ढीली है।

अगर आप शहरों या महानगरों में रहते हैं तो शादी के ऐसे कार्ड आपके पास अक्सर पहुंच रहे होंगे,जिसमें शादी तय करने में परिवार या कुनबे की भूमिका नहीं होगी। इसका मतलब ये कतई नहीं है कि आधुनिकता अनिवार्य रूप से जाति का ध्वंस कर रही है। इंटरनेट युग ने जहां मिलने जुलने और रिश्ते बनाने के अबाध मौके उपलब्ध कराए हैं वहीं शादी की साइट्स ने जातिवादी होने की हर सुविधा प्रदान की है। अमूमन हर मेट्रिमोनियल साइट आपको जाति के अनुसार वर और वधु छांटने की सुविधा देती है। यहां तक की वर्चुअल स्पेस में भी आप आप अपनी जाति और गोत्र तक के ग्रुप बना सकते हैं। ऑर्कूट से लेकर फेसबुक तक में जातियों के ग्रुप बन गए हैं जहां एक ही जाति के लोग वर्चुअल स्पेस में मिलते बतियाते हैं।

ये जाति की जीवनी शक्ति और वक्त के मुताबिक उसकी अनुकूलन क्षमता का एक और प्रमाण है। दरअसल शादी के मामले में जाति के ऊपर प्यार की निर्णायक जीत अभी नहीं हुई है। जाति संस्था लगभग दो हजार से अगर जिंदा है और फलफूल रही है तो इसकी यही वजह है कि उसमें इतना लोच है कि वो समय के मुताबिक खुद को ढाल ले। इस बार स्थिति इस मायने में अलग है कि जाति पर इस बार का हमला किसी सुधारक की इच्छा या उपदेश की वजह से नहीं हो रहा है। इस बार जो चीज बदल रही है वो है सामंती उत्पादन संबंध।

जाति व्यवस्था की प्राणवायु सामंती उत्पादन संबंध ही है। अगर उत्पादन के रिश्ते बदल जाएंगे तो जाति नहीं बचेगी। भारत इस समय तेजी से बदल रहा है। सर्विस और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर ने खेती को पीछे छोड़ दिया है। देश की जीडीपी यानी सकल घरेलू उत्पाद में खेती का हिस्सा घटकर 18 फीसदी से भी कम रह गया है। इस बदलाव का असर समाज पर भी हो रहा है। आपके पास आने वाले शादी के कार्डों में दिख रहे नाम अगर बदल रहे हैं तो इसका रिश्ता बदलते उत्पादन संबंधों से भी हैं। हर जाति के लोग, अगर अपने लिए तय काम नहीं करेंगे, और जाति के बाहर शादियां होने लगेंगी तो फिर जाति व्यवस्था में बचेगा ही क्या?

क्या आप इस बदलते समय की आहट सुन पा रहे हैं?

(पिछले साल का लेख है। बदलते समय के साथ सोच भी बदली है। लेकिन एक खास समय की विचार प्रक्रिया का हिस्सा है, इसलिए इसमें ज्यादा बदलाव नहीं किया है। )



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Dilip Mandal मनु महाराज की दुर्गति का दिन है। बधाई स्वीकार करें।
Monday at 11:32am · LikeUnlike · 7 people7 people like this.
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Jai Singh मुलाधार (उत्‍पादन संबंध) के साथ अधिरचना (जाति व्‍यवस्‍था जिसका एक हिस्‍सा है) का बदलना निश्चित है। प्रधान कारक मूलाधार का बदलना है। इसलिए सिर्फ अधिरचना में थोड़े बहुत हेर फेर करने से (जैसे कि आरक्षण के प्रावधान से) हजारों साल पुरानी इस व्‍यवस्‍था में आमूल-चूल बदलाव नहीं आएगा। इसलिए जरूरी यह है कि मूलाधार पर चोट की जाए। उत्‍पादन संबंधों को उत्‍पादक शक्तियों के विकास के अनुरूप बनाया जाए, और निश्चित ही यह काम भी रैडिकल और क्रान्तिकारी ढंग से होना चाहिए, क्रमिक या सुधारवादी ढंग से नहीं।
Monday at 11:46am · LikeUnlike
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Prabhat Shunglu बहुत खूब आंकलन दिलीप। बधाई।
Monday at 11:47am · LikeUnlike
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Dilip Mandal तो बजाएं ढोल-नगाड़े?
Monday at 11:48am · LikeUnlike · 1 personLoading...
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Prabhat Shunglu वक्त तो आ चुका है। इसमें कोई शक नहीं।
Monday at 11:48am · LikeUnlike
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Atul Dutt time to swing with new waves
Monday at 11:55am · LikeUnlike
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Prabhat Shunglu बदलते उत्पादन संबंधों में भी बस प्यार ही है जो धर्म, जाति और ( बदलते माहौल में ) लिंग भेद नहीं करता। इसलिए प्यार का जश्न मनाना पड़ेगा। हैप्पी वैलेंटाइन डे।
Monday at 11:55am · LikeUnlike · 4 peopleLoading...
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Avinash Pawar ‎@dilip ji ,perfect sir
Monday at 12:19pm · LikeUnlike
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Sampurna Nand Pandey भाई दिलीप जी सही कहा आपने
Monday at 12:33pm · LikeUnlike
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Md Iqbal
आपका आकलन सही नहीं है ........ये फूल कहीं और चढ़ाये जा रहे हैं शायद सभ्यता और संस्कृति की कब्र पर .................दलितों का गुस्सा वाजिब है जाती व्यवस्था ने उन्हें बहुत नुकसान पहुँचाया है मगर उस नुकसान की भरपाई का ये तरीका तो खुद उन के लिए... भी घातक है .........आज महा मगरों में अंतर्जतिये शादियाँ कम हो रही हैं प्यार आधारित शादियाँ भी टिकाऊ सिद्ध नहीं हो रही हैं जबकि उसके मुकाबले लिव इन रिलेशनशिप अधिक हो रहे हैं ...............यूज़ एंड थ्रो संस्कृति अधिक प्रचारित और प्रसारित हो रही है जे एन यु का ताज़ा उदहारण सामने है और क्या बताऊँ मैं आप तो मुझ से ज्यादा जानते होंगे के सेक्स के भ्रम जाल कितना फैला हुआ है ................ये दूसरी जंग है जिसमे सब शामिल हैं .............इस दूसरी सामाजिक जंग में वही जीतेगा जिसकी सामाजिक पृष्ठभूमि मज़बूत है और हारने वाला अपनी बची खुची संपत्ति भी खो देगा .............संपत्ति के न्यायोचित बंटवारे के दो तरीके हो सकते हैं .......... न्याय पर आधारित व्यवस्था कायम की जाये जो सामाजिक समानता को स्थापित करे या फिर राबिन हुड बन जाया जाये ...........न्याय आधारित व्यवस्था की स्थापना मुस्किल है मगर टिकाऊ है जबकि राबिन हुड का तरीका ग्लैमरस है मगर घातक ................अब ये आप पर निर्भर करता है आप कौन सा रास्ता पसंद करते हैंSee More
Monday at 1:16pm · LikeUnlike · 3 peopleMaya Mrig and 2 others like this.
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Avinash Pawar ‎@md iqbal,...sabhyata aur sanskriti.......hi hi hi hi.......hi hi hi hi hi hi hi hi ...
Monday at 1:18pm · LikeUnlike · 2 peopleLoading...
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Dilip Mandal असमानता और अन्याय पर आधारित सभ्यता की कब्र पर फूल चढ़ाए जा रहे हैं इकबाल साहब, तो क्या इस पर हम रोएं? यह तो जश्न की बात है।
Monday at 1:21pm · LikeUnlike · 3 peopleLoading...
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Md Iqbal भाषा पर आपकी पकढ़ है आप लोगों की बोलती बंद कर सकते हैं मगर हकीकत का मूंह नहीं बंद कर सकते ..............और जब हकीकत सामने आएगी तो अच्छे अच्छों के हलक सूख जायेंगे
Monday at 1:24pm · LikeUnlike · 2 peopleLoading...
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Md Iqbal रोने का विषय तो है .................आप हंस सकते हैं आप को कोई नहीं रोक सकता ................मगर मुझे तो लोगों को जहन्नम में जाता देख रोना ही पड़ेगा
Monday at 1:26pm · LikeUnlike · 2 peopleLoading...
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Dilip Mandal भाई अभी तो हम खुश हैं। जब हलक सूखेगा, तब की तब देख लेंगे। क्या होगा, इसका रोना तो पीढ़ियां रो चुकी हैं। क्या हो जाएगा, का खौफ दिखाकर बहुत गड़बड़ियां की गई हैं। आप भी अपने आस पास देखिए, बदलता वक्त पहले से अच्छा ही है।
Monday at 1:28pm · LikeUnlike · 2 peopleLoading...
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Kumar Avinash bajrang dal walo ka season aa gaya.
Monday at 1:31pm · LikeUnlike
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Md Iqbal खुश रहने से किसने रोका है ..........हमारी तमन्ना है आप हमेशा खुश रहे ............भविष्य की चिंता आप इस मामले में नही करते हों हो सकता है मगर ज़िन्दगी के दुसरे मामलों में भविष्य की चिंता नहीं करता हो ऐसा तो नहीं है ...........ये चिंता आप भी करते हैं ...........तब की तब देख ली जाएगी ये कभी अपनी पर्सनल ज़िन्दगी के बारे में भी बोलिए .... ........फिर महीने भर की तनख्वाह एक ही दिन में ख़तम कियूं नहीं कर देते .................तब की तब देखि जाएगी ...............रेत में मूंह छुपाने से हकीकत नहीं बदल जाएगी
Monday at 1:35pm · LikeUnlike · 3 peopleLoading...
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Prabhat Shunglu इकबाल किसी अंधगली के नुक्कड़ में जीना क्यूं चाहते हैं। आइये हम सब मिलकर उन्हे रोशनी की तरफ ले चलें।
Monday at 1:37pm · LikeUnlike
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Md Iqbal मैं बजरंग दल का समर्थक नहीं हूँ मगर आप के इस रवैय्ये का भी विरोधी हूँ ..............प्रभात जी आप की रौशनी कौन सी है .............नंगापन, प्यार के नाम पर अवैध रिश्ते , अपनी पहचान को तरसते नजयेज़ बच्चे .......... मुबारक हो आप को ये रौशनी हमें अपने अँधेरे मुबारक जिसमें खुशबु है वफाओं की
Monday at 1:44pm · LikeUnlike · 5 peopleLoading...
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Anil Bajpai very good iqbal ji
har point ke do pahlu hai.aachche ko apna sakte hai.
Monday at 1:52pm · LikeUnlike · 2 peopleLoading...
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Prabhat Shunglu इकबाल तुम बजरंग दल के समर्थक बेशक न हो, पर किसी कट्टरपंथी विचारधारा के गुलाम ज़रूर लगते हो। अब शायद कट्टरपंथी होने में भी तुम कुछ अच्छा ही ढूंढ़ लो। भरोसा नहीं। लेकिन दिलीप ने जो बात कही है वो अच्छे बदलाव को इंगित करती है। कट्टरता किसी भी प्रकार की हो, समाज के लिए विनाशकारी साबित हुई है। केवल लोगों को चुनौती देने के अंदाज़ में ज़बान चलाने से कोई बात प्रूव नहीं कर पाओगे। थोड़ा आसपास देखो। थोड़ा पढ़ो, समझो। फिर कमेंट करो।
Monday at 1:58pm · LikeUnlike · 1 personLoading...
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Md Iqbal प्रभात जी अच्छे मशवरे के लिए शुक्रिया...........मैं लोगों का कट्टरपंथी ओर ग़ैर कट्टरपंथी में बंटवारा नहीं करता....... ........जहाँ अच्छी बात मिलती है ले लेता हूँ ................और जहाँ ग़लत होता है तो लड़ता हूँ .............जहाँ तक लड़ सकता हूँ
Monday at 2:07pm · LikeUnlike · 5 peopleLoading...
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Maya Mrig एक घर में एक चूहा घुस गया...उसे भगाने के लिए मालिक बिल्‍ली ले आया....बिल्‍ली को भगाने के लिए कुत्‍ता लाया...कुत्‍ते को भगाने के लिए.....
Monday at 2:24pm · LikeUnlike · 2 peopleLoading...
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Prabhat Shunglu
तर्कसंगत लड़ाई अच्छी है। जैसे तहरीर चौक पर देखने को मिली। लोकतंत्र की लड़ाई। लोकतंत्र के लिए। बदलाव की आंधी में मुबारक के पैर उखड़ गए। हमें भी उस दखियानूसी और रूढ़ीवादी परंपराओं और मानसिकता को समाज में पैर पसारने से रोकना होगा। इससे बड़ा नं...गापन क्या होगा कि दूसरी जाति, धर्म में विवाह करने के लिए अपने बच्चो का खून कर दिया जाए। नंगापन वो भी तो है जो अपने लड़के को शादी के बाज़ार में खड़ा करके उसकी बोली लगवाता है। लड़की होने पर उसका कत्ल कर देना ये किस इन्सानियत की पहचान है। और ये तय कर लेना कि औरतों का काम बच्चे जनने से ज़्यादा कुछ नही, इंसान इससे ज्यादा और क्या नंगा हो सकता है। औरतो को डायन और चुड़ैल बता कर उन्हे समाज से बेदखल करना भी तो नाजायज़ मानसिकता है। सब बदलना पड़ेगा।See More
Monday at 2:28pm · LikeUnlike · 6 peopleLoading...
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Md Iqbal प्रभात जी अगर ये आप के ख्याल हैं तो मैं आप के साथ हूँ .........मगर किसी कि सही बात को "कट्टरपंथी" विचारधारा बोल कर हाशिये पर डालने कि कोशिश करना इन्साफ कि बात नहीं है .........
Monday at 2:35pm · LikeUnlike · 3 peopleLoading...
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Ashhar Ibraheem nice prabhat ji....
Monday at 2:36pm · LikeUnlike
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Rama Shankar parbhat ji main tho ye maantta hoon ki sab sahi hai aur sab galt hai,ab kya sahi hai aapke liye ye tho aapko aapko hi kya main hoon chaye kio aur sab ko patta hai ki jho shai hotta hai wo ek na ek din nikalkar sab ke saamne aatta zaroor hai.insaan ko bus apna kaam imaandaari ke saath karte rahena chaiye ek na ek din osko oska inaam zaroor mil jaatta hai aur waheen se shoorwaat hoti hai ache samaj ki jis samaaj main hum, kya, kai parkaar ke loog rahete hain.isliye bas kaam karo pic ka end acha hi hoga be + allways.
Monday at 2:37pm · LikeUnlike
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Prabhat Shunglu इकबाल तुम शायद कट्टरपंथी का अर्थ या भाव दोनो ही यहां मिस कर रहे। थोड़ा कैन्वास बढ़ाओ। आदरणीय माया जी से निवेदन करूंगा कि 'कीमत' को थोड़ा विस्तार से समझाएं।
Monday at 2:39pm · LikeUnlike · 1 personLoading...
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Maya Mrig आदरणीय प्रभात जी, कट्टरपंथ और दकियानूसी चलन के विरुद्ध लड़ाई निसंदेह अच्‍छी है लेकिन किस कीमत पर.... एक भ्रम से निकलकर दूसरे भ्रम में पड़ जाना...एक धुंध से दूसरी धुंध में चले जाना...
Monday at 2:39pm · LikeUnlike · 2 peopleLoading...
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Prabhat Shunglu धुंध और भ्रम भी समझाएं आदरणीय
Monday at 2:40pm · LikeUnlike · 1 personLoading...
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Maya Mrig हर दकियानूसी विचार का विरोध है लेकिन बाजार के खेल में शामिल होकर नहीं....
Monday at 2:40pm · LikeUnlike · 2 peopleLoading...
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Prabhat Shunglu फैसबुक बाज़ार है - इसको गलत साबित कीजिए।
Monday at 2:41pm · LikeUnlike · 1 personLoading...
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Prabhat Shunglu बाज़ार तो अटल, नश्वर है। तो क्या हम गूंगे, बहरे बने रहें। क्यों आदरणीय।
Monday at 2:49pm · LikeUnlike · 1 personLoading...
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Maya Mrig
बात दकियानूसी विचारों के विरोध से बाजार के समर्थन तक जा पहुंची है...बाजार की सर्वोच्‍चता स्‍वीकार कर लेने के बाद तो कोई लड़ाई ही शेष नहीं रहती...मुद्दा यही है मित्र कि बाजार को उसके तमाम हथकंडों के साथ स्‍वीकार करके क्‍या हम समाज की लड़ाई ...लड़ सकते हैं या उसके हथियार अलग से विकसित किए जाने की जरूरत है...चूंकि वहां कोई रेडीमेड सामान दिखता नहीं है इसलिए हम कई बार घबराकर बाजार की ताकत को अजेय स्‍वीकार कर बैठते हैं...लेकिन आप भी जानते हैं अजेय कुछ नहीं होता...। हो सकता है आज हमें मार्ग ना सूझ रहा हो पर इसका अर्थ नहीं कि रास्‍ते हैं ही नहीं। रही बात फेसबुक को गलत साबित करने की तो मित्र यह साबित करने जैसा कुछ नहीं है, ना ही कुछ साबित करना हमारा मकसद है, आप भी बेहतर जानते होंगे यह बाजार का ही एक उपक्रम है, बाजार की वे तमाम चीजें यहां मौजूद हैं जो उसके हथियार हैं, बस कुछ लोग यहां इसलिए हैं कि तंत्र के भीतर जाकर तंत्र को समझकर लड़ा जाए...ये भी तय नहीं कि सही रास्‍ता साबित होगा कि नहीं।See More
Monday at 3:05pm · LikeUnlike · 4 peopleLoading...
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Dilip Mandal मायामृग जी, बाजार तो कट्टरपंथ का भी है। कट्टरपंथ से बाजार को शिकायत कहां है। वह तो करवाचौथ भी बेच लेगा और वेलंटाइन डे भी।
Monday at 3:06pm · LikeUnlike · 3 peopleLoading...
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Maya Mrig बिलकुल...इसीलिए बाजार को साथ लेकर कट्टरपंथ के खिलाफ नहीं लड़ा जा सकता वह कट्टरपन धार्मिक हो या सामाजिक रूढि़ के रूप में। जातीय शोषण और गैर बराबरी बाजार घटाता नहीं बढ़ाता है...बेहतर है हम इसके झांसे में ना आकर अपनी लड़ाई खुद लड़ें...दिलीप जी
Monday at 3:10pm · LikeUnlike · 2 peopleLoading...
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Dilip Mandal बाजार अपने स्वार्थ में और संरचनात्मक कारणों से सामंतवाद के कुछ रूपों और प्रक्रियाओं को खारिज करता है। इस मामले में उसकी सकारात्मक भूमिका देखी जा सकती है। लेकिन यह किसी भी सूरत में आदर्श उत्पादन व्यवस्था नहीं है।
Monday at 3:12pm · LikeUnlike · 2 peopleLoading...
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Prabhat Shunglu सही कहा, बाज़ार के सामने सब बेबस नज़र आते हैं। सब अपनी लड़ाई खुद ही लड़ रहे मायामृग जी। बस बाज़ार के सामने घुटने टेक देने से भी क्या हासिल होगा। या लड़ाई सिर्फ इसलिए न लड़ी जाए कि सामने बाज़ार है, ये भी बुज़दिली होगी।
Monday at 3:14pm · LikeUnlike · 3 peopleLoading...
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Dilip Mandal बाजार से लड़ना है इसलिए तब तक कट्टरपंथ, कठमुल्लापन और पोंगापंथ से नहीं लड़ेंगे, ऐसा कैसे चलेगा? दोनों चीजें साथ-साथ चल सकती हैं।
Monday at 3:16pm · LikeUnlike · 3 peopleLoading...
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Maya Mrig आपकी बात से पूरी तरह सहमति है दिलीप जी, बस हम सावचेत रहकर ही बाजार के कुछ अच्‍छे तत्‍वों का इस्‍तेमाल अपनी लड़ाई में कर सकते हैं पर बाजार को अटल अनश्‍वर मानकर गूंगे बहरे बनने से तो सचमुच कुछ नहीं होगा...हमारी लड़ाई दोनों मोर्चों पर है...अपने समाज में मौजूद सामंती अवशेषों से भी और बाजार की शोषक व्‍यवस्‍था से भी....
Monday at 3:16pm · LikeUnlike · 2 peopleLoading...
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Dilip Mandal जैसे वेलंटाइन डे मनाएं और आर्चीज जैसी कंपनियों के कार्ड न खरीदें।
Monday at 3:17pm · LikeUnlike · 4 peopleLoading...
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Dilip Mandal सही है मायामृग जी। आपकी चिंता जायज है।
Monday at 3:17pm · LikeUnlike · 1 personLoading...
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Maya Mrig नहीं, ऐसा नहीं कि पोंगापंथ और कठमुल्‍लापन से लड़ाई छोड़ दें या शिथिल होंने दें, वह जारी रहे जरूरी है पर कहीं बाजार उसी तरह हमारी लड़ाई में ना घुस जाए जैसे किसी अच्‍छे खासे आंदोलन मंे कुछ शरारती तत्‍व घुसकर पूरे आंदोलन को ले बैठते हैं
Monday at 3:18pm · LikeUnlike · 4 peopleLoading...
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Maya Mrig आप मित्रों का आभार इस सार्थक चर्चा में मुझे भागीदार बनाने के लिए...
Monday at 3:19pm · LikeUnlike · 3 peopleLoading...
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Vinod Kumar Choubey
देशद्रोह के आरोप में वेलेंटाइन को मिली मौत की सज़ा...
प्यारे मित्रों, वेलेंटाइन महाशय एक राजा की सेना का सैनिक था। जब विदेशियों ने रोम पर हमला कर दिया। इस पर राजा ने युद्धकालीन नियमों के अनुसार सब सैनिकों की छुट्टियां रद्द कर दीं; पर वेलेंटा...इन का मन युद्ध में नहीं था। वह प्रायः भाग कर अपनी प्रेमिका से मिलने चला जाता था। एक बार वह पकड़ा गया और देशद्रोह के आरोप में इसे 14 फरवरी को फांसी पर चढ़ा दिया गया। इस युद्ध अपराधी को संत बना दिया। भारत के युवाओं को इसके नाम पर किस दिशा में धकेला जा रहा है, यह अवश्य सोचना चाहिए।See More
Monday at 6:09pm · LikeUnlike
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Shyam Juneja कृपया इसे जारी रखें ...बहुत कुछ सीखने और समझने को मिल रहा है ..! मुझे लगता है बाज़ार भी कट्टरता का एक रूप है ... लड़ाई समग्रता में हर प्रकार की कट्टरता के विरुद्ध हर मोर्चे पर लड़ी जानी है, तब जाकर किसी सार्थक बदलाव की आशा की जा सकती है ...और निरर्थक आलोचना में उर्जा का क्षय नहीं होना चाहिए..अब जैसे दिलीप ने जो लिखा "मनु महाराज की दुर्गति का दिन है। " क्या मतलब है इसका ? कोई अर्थ नहीं ! इससे मनु को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला लेकिन आप कहीं कमजोर होने लगते हैं !
Monday at 6:20pm · LikeUnlike
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Ghughuti Basuti बात हो रही थी प्रेम व अन्तर्जातीय विवाहों की. ये विवाह ही समानता व स्नेह का वातावरण तैयार कर सकते हैं. अन्तर्प्रान्तीय विवाह भी हों तो अच्छा होगा. जिन जातियों व प्रान्तों में हमारे परिवार के सदस्यों का विवाह होगा वे हमारे अपने हो जाएँगे और हम स्वार्थवश भी उनका भला ही चाहेंगे. जाति प्रथा का अन्त ऐसे ही हो पाएगा.
Monday at 6:29pm · LikeUnlike · 1 personLoading...
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Ravindra Kumar Goliya ‎@Dilip Sir...Ummeed ki jaani chahiye ki aage yeh process aur gati pakdega...aur haan RSS ke log jo yahan ghus aaye hain unhe bata dena thik hoga ki Internet ke zamane me ve afwah udane se baaz aayein...Valentine's Day ka itihaas jise pata karna hoga wo internet se kar lega...
Monday at 7:16pm · LikeUnlike · 1 personLoading...
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Swami Chidambaranand प्यार का धक्का नहीं होता प्यार का स्पर्श ही बदलने को काफी है.....और धक्का वे देते हैं जिनके मन में प्यार नहीं है.....धक्के का बदलाव स्थिर नहीं होगा कोई दुसरा धक्का उसे भी मिटने को मजबूर करेगा.
Monday at 8:14pm · LikeUnlike
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Dilip Mandal प्रेम से प्रेम बढ़ता है स्वामी जी।
Monday at 9:30pm · LikeUnlike · 1 personLoading...
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Mukesh Singh a
Monday at 9:38pm · LikeUnlike
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Mukesh Singh abe saint valentine to mar gaye....hume musibat de gay ...valentine day ke naam pe.....
Monday at 9:39pm · LikeUnlike
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Sanya Rahman http://bit.ly/ffindiavideo
Monday at 10:25pm · LikeUnlike
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Shyam Juneja विश्व-बन्धुत्व और मानवता के पथ पर, किसी के प्रति, किसी भी प्रकार की घृणा की कोई गुंजाईश नहीं होती ... संत वैलेंटाइन प्रेम का ही संदेश दे रहे हैं ... उनके प्रति तिरस्कार की भावना किस लिए ?
Yesterday at 5:37am · LikeUnlike
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Sumrana Khan kuch hamare matlab ka bhi likh deya kare kabhi kabhi...
23 hours ago · LikeUnlike
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Avinash Pawar marx virus se abhi tak bahot saare brains pidit hai........din raat sarkari thali ko kosenge ki khana sada-gala hai,kum hai ............. bazar ki thali me khayenge aur usi me ched karenge
16 hours ago · LikeUnlike
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Avinash Pawar aur wo gurjaar ....us bechare ke school me sex ke liye samanarthi shabd valantine sikhaya gaya....
16 hours ago · LikeUnlike

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