Friday, February 5, 2010

Here are few lines....in the line of we shall over come...Hum honge kamyab....(written by Gurudev RavindraNath Tagore)!!!

SOLITARY BATTLE
BUT WHEN YOU DO NOT GET
THE SUPPORT YOU SEEK FOR YOUR PATH
WALK ALONE.....WALK ALONE....

PERHAPS THERE WILL BE NO ONE INITIALLY
TO EVEN LISTEN TO YOU....

PERHAPS YOU WILL HAVE TO TAKE
THE FIRST STEP


. EKLA CHALO RE!
WHEN TENSION RISE
AND WORLD SEEMS HOPELESS
YOU MIGHT BE INTIMIDATED TO
FIGHT A
BECAUSE SOMEONE,
SOMEWHERE
HAS TO DO IT....

BECAUSE YOUR IDEAS MIGHT SEEM
REDICULOUS TO THEM
BUT THEY COULD BE EXTRAORDINARY

WALK ALONG WITH CONVICTION....

YOU WILL GET THE NEEDED SUPPORT
AND VERY SOON,
A MOVEMENT WILL BE THERE FOR YOU TO LEAD

MAYBE, YOU WILL BE NOT LIVE TO SEE THE RESULT
BUT YOUR LEGACY WILL LIVE ON......

TO SEE THE FRUITS OF YOUR ACTION
AND THE WORLD WILL REMEMBER YOUR

ONE CRAZY STEP......
THAT BROUGHT ABOUT THE CHANGE THEY SEE NOW!1

--A TRIBUTE TO ALL THE CRAZY INDIANS
WHO WALKED ALONE WITH NOTHING

BUT A HOPE TO BRING A CHANGE.....

ONE DAY.....!!!(written by Gurudev Ravindra nath Tagore)


SO DEFINITLY WE SHALL OVERCOME ONE DAY FROM ALL KIND OF PROBLEMS !!!

VIBHA TAILANG(BATCH 1983)

- Show quoted text -
On 1/6/10, AMRESH SINHA wrote:
Dear All,
I went through this message as written below by Vibha and am very happy feeling encouraged that One Day we shall overcome. Bharat ka Swarnim gaurav KV layega.This is not a mere song which we used to sing during our school- days at KV Barauni.Every Baraunian must come up and exercise his energy & power in attracting the attention of the public in general to show what wrong has been done to HFC Barauni which was a great civilization in itself. Now it has become a graveyard like Harappa & Mohenjodaro.I have seen its victim employees & families with children weeping in midnight., people getting nostalgic to the point of madness.Entire social matrix lost .The Tall water tanki has dried out for lack of electricity .There is no water in it left to shed tears.
Complete black out has provided opportunities to Anti - Social elements to thrive upon.
However, being Baraunian I am still hopeful for the best in near future. I believe in what I have done for Barauni and not in what Barauni has done for me and that every Baraunian should.That I have my own Industrial Set- up near Deonah, Paprour working with 40 employees rendering services to Tata Motors Commercial Vehicles of all Ranges under the banner of M/S Mahaluxmi Auto, Tata Motors Authorised Service Station. We have been awarded the Certificate of Achievement for the best performance and teamwork in Bihar for the F/Y 2007-08, 08-09 at Bhubaneshwar & Kolkata respectively.We hope for the best and positive in the F/Y 09-10. This I am writing because I strongly believe that still there is silver line in the dark cloud.One step forward and you can think of landing on the Moon one takes step forward.
Here I am confined to Barauni only as regards discussion. I am well aware of the situation in Bihar.This is good that things are changing in Bihar , however, pace is very slow.I welcome the coming sounds of changes .

Regards
Amresh Sinha (1984C)
Dy. Managing Director
Mahaluxmi Auto
Tata Motors Authorised Service Station
Paprour, Begusarai
search.amresh@gmail.com


2010/1/6 Vibha Tailang

क्या आप बिहारियों को भी अच्छा लग रहा है?
बिहार से अच्छी ख़बर आने का मतलब आप समझते हैं। हम सब वहां से भागे प्रवासी नागरिक आज कल खुश तो होंगे ही कि बिहार तरक्की कर रहा है। अपने राज्य को लेकर इतना सकारात्मक और सतर्क भाव कभी नहीं आया। पिछले तीन चार सालों में जितनी बार पटना गया,लोगों को डरा हुआ नहीं पाया। उससे पहले घरों और चौराहों की आम बातचीत में भय और विवशता झलकती थी। नीतीश ने यही दूर कर दिया,काफी है। मेरा भी यही मानना है कि बिहार को सिर्फ अच्छी सड़क, बिजली और कानून व्यवस्था चाहिए। कानून व्यवस्था का संबंध कार्य संस्कृति से है। यह खराब होती है तो व्यक्तिगत प्रयासों पर असर पड़ता है।

अपरहरण के टाइम में लोग इतने हताश हो चुके थे कि अपनी दुकान बंद कर दिल्ली बंबई की तरफ रूख करने लगे थे। गांव गया तो पहली बार जम कर घूम रहा था। यह किसी आज़ादी से कम नहीं थी। पहले कब कौन सी गाड़ी रूक जाए और बोलेरो से कोई तिवारी पांडे का भाई बंदूक लिये उतर आता था। हालचाल ऐसे पूछता था मानो अब गोली भी मारेगा। पिछले साल गांव गया था तो इस संस्कृति के अवशेष तो नज़र आए मगर इमारत ढह चुकी थी। बिहार के नेताओं और लोगों ने खतम व्यवस्था के साये में अपराधीकरण का सामाजिकरण कर दिया था। आम संपन्न लोग भी अपराधी रिश्तेदारों को नाम गर्व से लेते थे। अब काफी बदल गया है।


बिहार के ११ फीसदी से अधिक की विकास दर ने साबित कर दिया है कि बिहार की प्रगति बड़े उद्योगों से नहीं होनी है। बिहार की उपजाऊ ज़मीन और पानी की अधिकता उसे बिना उद्योगों के ही तरक्की के रास्ते पर ले जाएगी। कृषि और कृषि आधारित व्यावसाय का जितना विकास होगा,आम बिहारियों की भागीदारी उतनी बढ़ेगी। पलायन रूकेगा और लोगों की कमाई का शेयर बढ़ेगा। इस तरक्की से भले ही कोई शहर खूबसूरत न लगे लेकिन आम घरों में लोग सूकून में नज़र आयेंगे।


एक पहचान के रूप में बिहारी होने का मतलब कई सारे नकारात्मक तत्वों का सार होना है। यह जब भी बदलता है, जितना भी बदलता है अच्छा लगता है। महाराष्ट्र से धकियाये जाने की इतनी दलीलों के बाद भी बिहार के लोगों में क्षेत्रीयता नहीं पनपी। वो इस संकीर्णता से बचे रहे तभी बिहारी होना अच्छा रहेगा। कई लोग हैं जो बिहार की तरक्की की खबर को आशंकाओं से भी देख रहे हैं। उनकी आशंकाएं वाजिब है। इन्हीं आशंकाओं से जब आशा की किरण निकलती है तो बेहतर लगता है।


बिहार के प्रवासी लोग अपने अपने शहरों में राज्य की छवि को लेकर काफी चिंतित रहते हैं। ये उनकी किसी भी कामयाब पहचान को प्रभावित करता है। अगर आप यू ट्यूब देखेंगे तो उसमें पटना शहर को लेकर कितने तरह के वीडियो हैं। विदेशों में बसे लोग पटना की चंद इमारतों को खूबसूरत लगने वाले एंगल से शूट कर उन्हें अंग्रेजी गाने के साथ परोस रहे हैं। दावा करते हैं कि देखो, ये है पटना। किसी की मत सुनो,अपनी आंखों से देख लो। और बिस्कोमान का एफिल टावर नुमा शाट घूमने लगता है। कोने में पड़ा कृष्ण मेमोरियल वीडियो में बुर्ज दुबई की तरह दिखने लगता है। वीडियो अपलोड करने वाला कहता है,देखा पटना गांव नहीं हैं। बिहार को लेकर नई किस्म की इस उत्कंठा पर और नज़र डालनी चाहिए। दिवाली के दिन मैंने अपने इसी ब्लॉग पर वीडियो में बसता एक शहर लिखा था। जिसमें पटना को लेकर बिहारी अभिलाषाओं की झलक मिलती है।


सतह पर भले ही बदलाव कंक्रीट रूप में न दिखे लेकिन इतना तो है कि समझ और सोच में दिखने लगा है। राजनीति होती रहेगी। नीतीश क्या हैं और लालू क्या हैं। लेकिन नीतीश ने कुछ तो किया। शून्य से एक राज्य को यहां तक पहुंचा दिया है। कमियां होंगी तो उनकी आलोचना करते रहिए ताकि नीतीश काम करते रहें। तारीफ करने लायक बात हो तो जम कर कीजिए। बिहार की उन समस्याओं और तस्वीरों को भी सामने लाइये जिनके बारे में अभी कुछ नहीं किया गया है।


तभी हमें भी लोग महफिलों में कह सकेंगे कि ओह...आप बिहार के हैं। वाह। अभी तो लोग कहते हैं...ये सारे के सारे बिहारी। कहने का मतलब होता है कि चोर होते हैं और हर वक्त चोरी की ही बात करते रहते हैं। एक बंडल में समेट कर फेंक दिये जाने का दुख तो होता है लेकिन संकीर्ण न होने की ताकत कहां से आ जाती है,यही समझ नहीं आता। शायद यही बिहारी होना होता है। प्रवासी होकर भी हम संकीर्ण नहीं होते। हम दुनिया को विचार देने वाले लोग रहे हैं। बीच के पचास सालों में सार्वजनिक और व्यक्तिगत संस्कार कम हो गये थे और विकास खतम। ये दो सुधर जाएं तो जितनी कामयाबी बिहार के लोग दूसरे प्रदेशों और मुल्कों में प्रवासी जीवन व्यतीत कर पा रहे हैं,उससे कहीं अधिक कामयाबी अपनी मिट्टी में पा लेंगे।


दूसरे राज्य के पाठक बिल्कुल न सोचें कि हम संकीर्ण हो रहे हैं या हमारे भीतर कहीं किसी दमित रूप में बिहारीवाद बसा था। हम बस हल्का सा खुश हो रहे हैं। इतनी गाली सुनी है कि सरकार का ये आंकड़ा अपने घर का लगता है। बाकी हकीकत आप भी जानते हैं और हम भी जानते हैं।
Posted by ravish kumar at Tuesday, January 05, 2010




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